Guru ka Arth Mahattav v Upyogita | गुरु का अर्थ महत्तव व् उपयोगिता

हमारे प्राचीन काल से ही गुरु शिष्य परम्परा चली आ रही है है और आज भी है और आगे भी रहेगी. वास्तव में गुरु शिष्य परम्परा एक पूर्ण रूप से यशस्वी परम्परा है. गुरु तो शिष्य के लिए भगवान् से भी उपर होते है. और जो शिष्य इसी विचार को अपने दिमाग व् स्वभाव में बिठाकर साधना में आगे बढ़ता है, वो निसंदेह शत प्रतिशत भौतिक और अध्यात्मिक कामयाबी हासिल करता है.

 गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूँ पाय।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।। 
 
गुरु का अर्थ महत्तव व् उपयोगिता
गुरु का अर्थ महत्तव व् उपयोगिता
गुरु शब्द का अर्थ भी सीधा साधा है, गु शब्द अन्धकार का बोधक है और रु शब्द का मतलब है प्रकाश ज्ञान. मतलब अन्धकार का नाश करने वाला जो परमात्मा का पूर्ण प्रकाश है वो ही गुरु है. इसमें भी कई तरह के गुरु हमारे जीवन में हम बनाते है, जैसे आधुनिक शिक्षक जो केवल पेट पालू या धन अर्जन का ही ज्ञान देता है. बल्कि जीवन में जो भी जहां से भी हम कुछ सीखते है वो सब हमारे गुरु ही तो होते है.


      लेकिन जो पूर्ण महा गुरु होते है जिनको हम सदगुरु भी बोलते है वो सब से अलग होते है तो केवल एक अध्यातम का ही ज्ञान हमें प्रदान करते है. ये सदगुरु ही सच्चे संत होते है जो कभी अपने लिए न सोच कर केवल समाज और धर्म के लिए अपना सब कुछ त्याग देते है.

अब बात है गुरु क्या है, कैसा है और कौन है यह पता करने के लिए उनके शिष्यों को जानना जरूरी होता है मतलब ये के केवल शिष्य को जान लो गुरु की परख हो जाती है. और एक बात, ये परख भी केवल और केवल वो ही कर सकता है जो खुद गुरु या शिष्य हो. कोई भी राह चलता हो और गुरु मुखी न हो उसकी कोई औकात नहीं की वो जान सके गुरु की उचाईयों को या शिष्य के समर्पण को.


एक उदारहण जब रामकृष्ण परमहंस ने बहुत कोशिश की थी की विवेकानंद उनके शिष्य बन जाए. लेकिन विवेकानंद बुद्धिजीवी थे. वे रामकृष्ण की सिद्धियों को मदारी के खेल से जयादा कुछ नहीं मानते थे. इसी प्रकार जब विवेकानंद जांच परख कर शिष्य बने तब उनको ज्ञात हो गया था की इनके पास ऐसा कुछ ख़ास और महान है जो बहार से बिलकूल दिखाई नहीं देता और केवल समर्पण से ही दिखाई देता है. इसीलिए गुरु शिष्य को केवल गुरु या कोई शिष्य ही पहचान सकता है अन्य कोई नहीं. 


आज के युग में सभी को ये लगता है की पूर्ण गुरु तो बस हमारे इतिहास में ही हो चुके है अब कुछ नहीं रहा. लेकिन ये सब केवल नादानी ही है. आज के युग में भी संत और गुरु है और पूर्ण अपनी महिमा में विद्यमान है. उन्हीं में से एक है – संत श्री आसाराम जी बापू ! जी हाँ पूज्य बापू जी एक पूर्ण संत है जो अपनी पूर्ण महिम के साथ अवतीर्ण हुए है और ये बात वो सब जानते है जो खुद सच्चे गुरु या शिष्य है.


पूज्य बापू जी की महिमा उनके सभी शिष्य जानते है और मानते है. बापूजी की आज्ञा में रहकर जो भी शिष्य साधना करता है उसको गुरु जी कहां से कहां पहुंचा देते है, ये तो साधक को बाद में पता चलता है जब वो पूरी अध्यात्मिक यात्रा कर चूका होता है.


बाकी यहाँ में बापू जी की महानता के बारे में ही कुछ लिखने की कौशिश कर रहा हूँ. इसीलिए सभी गुरु बहनों / भाइयों से अनुरोध है की मेरी त्रुटियों को सुधारते हुए, एकजुट होकर कुछ ऐसा प्रयास करें जिससे की सच्चाई सभी तक पहुंच जाए और सभी बापूजी के सानिध्य का लाभ उठा सके.
 
Guru ka Arth Mahattav v upyogita
Guru ka Arth Mahattav v upyogita
 Sadguru ka Arth, Satguru ka Mahattav, Gurudev ki upyogita, गुरु का अर्थ, सतगुरु का महत्तव, सदगुरु की उपयोगिता.

1 comment: